महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव: महाराष्ट्र चुनाव की तारीखों का ऐलान क्यों नहीं हुआ? चुनाव आयोग ने बताई 3 बड़ी वजहें

मुख्य चुनाव आयुक्त ने तीन कारण बताते हुए बताया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी तक क्यों नहीं हुआ है। इस बार मुकाबला काफी कड़ा होने की उम्मीद है। महाविकास अघाड़ी समूह का नेतृत्व कर रही उद्धव ठाकरे की शिवसेना लंबे समय से चुनाव की तैयारी कर रही है। वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति समूह अभी भी सीटों के बंटवारे पर चर्चा कर रही है। इसलिए चुनाव की तारीखों का खुलासा होने में कुछ और समय लगेगा। कई लोगों को लगा था कि चुनाव आयोग हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनावों के साथ ही महाराष्ट्र चुनाव की तारीखों का भी ऐलान कर देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुनाव आयोग ने बताया कि उसने महाराष्ट्र चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी तक क्यों नहीं किया है। महाराष्ट्र और हरियाणा दो जगहों पर विधानसभा चुनाव एक साथ होने थे। इसलिए सभी को लगा कि जब हरियाणा के चुनाव की तारीखों का ऐलान होगा तो महाराष्ट्र के भी तारीखों का ऐलान हो जाएगा। सभी राजनीतिक दल इन चुनावों की तैयारी में जुटे थे। लेकिन आखिरी समय में मुख्य चुनाव आयुक्त ने सिर्फ जम्मू-कश्मीर और हरियाणा की तारीखों का ऐलान किया। जब लोगों ने पूछा कि उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव की तारीखों का ऐलान क्यों नहीं किया तो उन्होंने इसकी वजह बताई। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कहना है कि महाराष्ट्र में अभी विधानसभा चुनाव न होने की मुख्य वजह बारिश और त्यौहार हैं। इस मौसम में महाराष्ट्र में बहुत बारिश हो रही है और आयोग नहीं चाहता कि बारिश की वजह से मतदान में बाधा आए। इसके अलावा, बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) द्वारा किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण काम अभी पूरे नहीं हुए हैं। चुनाव कराने से पहले हमें इन सभी बातों का ध्यान रखना होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त ने अपने फैसले के पीछे तीसरी वजह बताई: सुरक्षा गार्डों की संख्या। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने वाले हैं, जहां अधिक सुरक्षा गार्डों की जरूरत है क्योंकि हाल ही में वहां आतंकवादी घटनाएं अधिक हुई हैं। इस वजह से उन्होंने केवल दो राज्यों में एक ही समय पर चुनाव कराने का फैसला किया ताकि सभी को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त सुरक्षा गार्ड उपलब्ध हो सकें।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 114 सीटें हैं लेकिन सिर्फ 90 सीटों पर ही होंगे चुनाव, क्या है वजह

जम्मू-कश्मीर चुनाव 2024: जम्मू-कश्मीर में लोग चुनाव नामक एक महत्वपूर्ण आयोजन में अपने नेताओं का चयन करेंगे। यह तीन भागों में होगा, जिसकी शुरुआत सितंबर से होगी। भारत का चुनाव आयोग, जो एक बड़ी टीम की तरह है जो यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव निष्पक्ष हों, इसके लिए तैयार हो रहा है। लेकिन अंदाज़ा लगाइए? कश्मीर में सभी जगहों पर ये चुनाव नहीं होंगे। 24 विशेष सीटें हैं जहाँ मतदान नहीं होगा। 10 साल में यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में इस तरह के चुनाव हो रहे हैं, और यह सभी को बहुत उत्साहित और व्यस्त कर रहा है। चुनाव 18 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच होंगे, जिसका मतलब है कि लोग 14 दिनों में मतदान करेंगे। लेकिन मतदान के लिए स्थानों को चुनने के तरीके में कुछ अनोखा है, और इसीलिए उन 24 सीटों पर चुनाव नहीं होंगे। ठीक है, कल्पना कीजिए कि आपके पास 114 टुकड़ों वाली एक बड़ी पहेली है। लेकिन अब, पहेली को एक साथ रखने के तरीके में कुछ बदलावों के कारण, आपको चित्र बनाने के लिए केवल 90 टुकड़ों का उपयोग करने की आवश्यकता है। यह जम्मू और कश्मीर नामक जगह पर हो रहा है। उनके पास खेलने के लिए 114 गोटियाँ (या सीटें) होनी चाहिए थीं, लेकिन अब वे केवल 90 गोटियों का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नामक एक अन्य स्थान में कुछ बदलाव किए गए हैं। इसलिए, जब उनका अपना विशेष खेल होगा, जिसे चुनाव कहा जाता है, तो वे केवल 90 गोटियों का उपयोग करेंगे। 2019 में, अनुच्छेद 370 नामक एक विशेष नियम को हटा दिया गया था। यह नियम जम्मू और कश्मीर नामक स्थान को विशेष अधिकार देता था। इसके बाद, उन्होंने उस स्थान पर मतदान क्षेत्रों के लिए सीमाओं को बदलने की प्रक्रिया शुरू की। इस काम को करने के लिए मार्च 2020 में परिसीमन आयोग नामक लोगों का एक समूह बनाया गया था। उन्होंने अपना काम पूरा किया और मई 2022 में अपनी अंतिम योजना साझा की। उनकी योजना में और अधिक मतदान क्षेत्र जोड़े गए, जिससे कुल 107 से बढ़कर 114 हो गए। उन्होंने जम्मू में 6 नए क्षेत्र और कश्मीर में 1 नया क्षेत्र जोड़ा। पीओके में 24 कुर्सियाँ हैं। कुल 114 सीटें हैं, लेकिन इनमें से 24 सीटें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर नामक एक विशेष क्षेत्र के लिए सुरक्षित हैं, इसलिए कोई भी उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकता। इससे 90 सीटें बचती हैं जहाँ लोग वास्तव में चुनाव लड़ सकते हैं: जम्मू क्षेत्र में 43 सीटें और कश्मीर क्षेत्र में 47 सीटें। राज्य के विशेष दर्जे में बदलाव के बाद यह पहली बार है जब वे ये चुनाव करवा रहे हैं। पिछली बार राज्य विधानसभा चुनाव कब हुए थे? दुख की बात है कि मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद का 7 जनवरी, 2016 को निधन हो गया। उसके बाद, थोड़े समय के लिए राज्यपाल ने कार्यभार संभाला। फिर, महबूबा मुफ़्ती नाम की एक महिला नई मुख्यमंत्री बनीं। ठीक है, कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसी जगह पर रहते हैं जहाँ लोग अपने नेताओं को चुनने के लिए मतदान करते हैं। यह नवंबर और दिसंबर 2014 में हुआ था, जो लगभग दस साल पहले की बात है। सभी के मतदान करने के बाद, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी नामक दो समूहों ने मिलकर इस जगह को चलाने का फैसला किया। मुफ़्ती मोहम्मद सईद नाम का एक व्यक्ति मुख्य नेता बन गया, जिसे मुख्यमंत्री कहा जाता है। पिछली राज्य सरकार जून 2018 में, भाजपा पार्टी ने पीडीपी पार्टी को सरकार चलाने में मदद करना बंद करने का फैसला किया। इस वजह से, राज्यपाल ने जम्मू और कश्मीर का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। फिर नवंबर 2018 में, राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने राज्य विधानसभा को समाप्त करने का फैसला किया, जो कानून बनाने वाले लोगों का एक समूह है। बाद में, 20 दिसंबर, 2018 को राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। ज़रूर! कल्पना कीजिए कि आपके पास एक बड़ा खेल का मैदान है, और कुछ बच्चे इस बात पर बहस कर रहे हैं कि इसके एक निश्चित हिस्से पर कौन खेलेगा। पीओके (जिसका मतलब है पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर) खेल के मैदान का वह खास हिस्सा है। दो बड़े समूह, भारत और पाकिस्तान, दोनों कहते हैं कि यह उनका है और कभी-कभी इसके कारण वे साथ नहीं मिल पाते। यह असहमति वहां रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है, ठीक वैसे ही जैसे बहस करने से खेल के मैदान पर मौज-मस्ती करना मुश्किल हो जाता है। भारत में, पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित कश्मीर के हिस्से को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या पीओके कहा जाता है। पाकिस्तान में, वे इस क्षेत्र को आज़ाद जम्मू और कश्मीर या एजेके कहते हैं। वहां रहने वाले लोग अपने स्थानीय नेताओं को चुनने के लिए चुनावों में वोट देते हैं जो क्षेत्र का प्रबंधन करने में मदद करते हैं। पाकिस्तान अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र पीओके (पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर) में चुनाव कराता है। इन चुनावों में, लोग स्थानीय सरकार के लिए 53 सदस्यों को चुनने के लिए मतदान करते हैं। 45 सीटें हैं जिन पर लोग सीधे मतदान कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ समूहों के लिए 8 विशेष सीटें आरक्षित हैं: 5 महिलाओं के लिए और 3 विशेषज्ञों और क्षेत्र के बाहर रहने वाले कश्मीरियों के लिए। यहां करीब 3.2 मिलियन लोग चुनाव में वोट कर सकते हैं। 700 से ज़्यादा लोग इन चुनावों में चुने जाना चाहते हैं। पाकिस्तान की बड़ी पार्टियाँ भी जीतने की कोशिश कर रही हैं। अगर इनमें से कोई एक पार्टी यहाँ जीत जाती है, तो उसे आमतौर पर पूरे देश में काफ़ी ताकत मिल जाती है। लेकिन ये चुनाव दिखावा ज़्यादा हैं। लोगों का कहना है कि यहाँ चुनाव बहुत साफ़ और निष्पक्ष नहीं होते। नेताओं के इस समूह के पास ज़्यादा ताकत नहीं है क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और एक विशेष परिषद के पास अहम अधिकार हैं। हाल ही में यहाँ कुछ लोग पाकिस्तान के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर, जिसे POK के नाम से भी जाना जाता है, एक बड़ा इलाका है जिसका आकार करीब 13,297 वर्ग
मिठाइयों के ज़रिए दोस्ती का पैगाम…’युद्ध’ की बात करने वाले बांग्लादेश के तेवर में अचानक बदलाव! पहली बार बॉर्डर पर अनोखा नजारा

दो दिन पहले बांग्लादेश के एक नेता ने सीमा पर तैनात अपने सैनिकों से कहा कि वे बहादुर बनें और भागें नहीं। कुछ लोगों को लगा कि शायद वे भारत के साथ लड़ाई शुरू करना चाहते हैं। लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने दोस्ताना अंदाज में भारत को मिठाइयां भेजीं। और पहली बार कुछ खास हुआ। हाल ही में सरकार बदलने के कारण बांग्लादेश में काफी घबराहट है। कुछ दिन पहले गृह मंत्रालय के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति ने सैनिकों से सीमा पर बहुत सख्ती बरतने और मुंह न मोड़ने को कहा। लोगों को लगा कि शायद वे भारत के साथ परेशानी खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन फिर कुछ अच्छा हुआ – दोनों देशों के सैनिकों ने दोस्ती दिखाने के लिए एक-दूसरे को मिठाइयां बांटीं। यह स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान हुआ। यह इसलिए खास था क्योंकि पहली बार भारत की बीएसएफ की महिला सैनिकों ने बांग्लादेश की बीजीबी की महिला सैनिकों के साथ मिठाइयां बांटी। यह कार्यक्रम नादिया जिले के गेडे सीमा चौकी पर हुआ। शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से दोनों देशों के बीच सीमा पर काफी तनाव है। लेकिन स्वतंत्रता दिवस पर दोनों पक्षों के सैनिकों ने दोस्ती दिखाने के लिए एक-दूसरे को मिठाइयां बांटी। पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग, जिसमें दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और दिनाजपुर जैसे स्थान शामिल हैं, की देखभाल पूर्वी कमान द्वारा की जाती है। बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के बीच यह मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि एक दिन पहले ही एम शखावत हुसैन नामक एक सेवानिवृत्त जनरल ने बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के सैनिकों से कहा था कि अगर सीमा पर कोई लड़ाई होती है तो वे बहादुरी से लड़ने के लिए तैयार रहें। उन्होंने आगे क्या कहा? उन्होंने भारत का जिक्र नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) सीमा नहीं छोड़ना चाहता है। हमारे लोग वहां घायल हो रहे हैं, और बीजीबी को इस बारे में बात करने के लिए झंडों के साथ कई बैठकें करनी पड़ती हैं। मैंने बीजीबी को बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि वे भागें नहीं। पिछले 10 दिनों में, बीएसएफ और बीजीबी के बीच 100 फ्लैग मीटिंग हो चुकी हैं। लेकिन आज की बैठक अतिरिक्त महत्वपूर्ण थी क्योंकि सभी लोग वहां मौजूद थे। इन बैठकों में बीएसएफ और बीजीबी को एक-दूसरे से कैसे बात करनी चाहिए, इसके लिए विशेष नियमों और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाता है। नादिया के पास साझा करने के लिए सबसे अच्छी खबर थी। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले से एक बड़ी खबर आई। यहां पहली बार बीएसएफ की 32वीं बटालियन की महिला सैनिकों ने बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) के सैनिकों को मिठाई दी। ये सैनिक गार्ड की तरह हैं और नादिया जिले में सीमा को सुरक्षित रखने के लिए क्षेत्र में काम करते हैं। नेता सुजीत कुमार ने कहा कि बधाई और मिठाई बांटना दर्शाता है कि वे एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और एक-दूसरे की परवाह करते हैं। यह एक विशेष परंपरा है और यह पहली बार है जब महिला सैनिकों ने ऐसा किया है।
रिकी पोंटिंग का बयान, विराट कोहली का नाम नहीं लिया, कहा- यह इंग्लिश बल्लेबाज तोड़ सकता है सचिन तेंदुलकर का रिकॉर्ड

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके रिकी पोंटिंग को लगता है कि इंग्लैंड के क्रिकेट खिलाड़ी जो रूट भारत के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर से भी ज़्यादा टेस्ट रन बना सकते हैं। अब तक जो रूट ने 143 टेस्ट मैचों में 12,027 रन बनाए हैं। दुबई में लोग क्रिकेट के एक बड़े रिकॉर्ड की चर्चा कर रहे हैं। भारत के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के नाम टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके रिकी पोंटिंग को लगता है कि जो रूट नाम का एक इंग्लिश खिलाड़ी सचिन का रिकॉर्ड तोड़ सकता है। जो रूट को रन बनाना वाकई बहुत पसंद है और वह इसे बखूबी कर रहे हैं। अगर वह अगले चार साल तक इसी तरह खेलते रहे तो शायद वह सचिन से भी ज़्यादा रन बना लें। हाल ही में जो रूट टेस्ट क्रिकेट में 12,000 से ज़्यादा रन बनाने वाले सिर्फ़ सात खिलाड़ियों में से एक बन गए हैं। इंग्लैंड के क्रिकेट खिलाड़ी जो रूट ने 143 टेस्ट मैचों में 12,027 रन बनाए हैं। एक अन्य प्रसिद्ध खिलाड़ी तेंदुलकर के नाम 200 टेस्ट मैचों में 15,921 रन हैं। सूची में दूसरे स्थान पर मौजूद पोंटिंग ने 168 टेस्ट मैचों में 13,378 रन बनाए हैं। एक अन्य शीर्ष खिलाड़ी विराट कोहली ने 113 टेस्ट मैचों में 8,848 रन बनाए हैं, जिससे वह टेस्ट मैचों में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाड़ियों की सूची में 19वें स्थान पर हैं। पोंटिंग ने ICC की समीक्षा में उल्लेख किया कि जो रूट के पास रिकॉर्ड तोड़ने का मौका है। रूट 33 वर्ष के हैं और उन्हें पकड़ने के लिए लगभग 3,000 और रनों की आवश्यकता है। यदि वह प्रत्येक वर्ष 10 से 14 टेस्ट मैच खेलते हैं और सालाना 800 से 1,000 रन बनाते हैं, तो वह तीन से चार वर्षों में यह मुकाम हासिल कर सकते हैं। जो रूट वर्तमान में सूची में सातवें नंबर पर हैं। आइए कुछ बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में बात करते हैं जिन्होंने टेस्ट मैचों में सबसे अधिक रन बनाए हैं कुक ने 161 टेस्ट मैच खेले और 12,472 रन बनाए। अब तक सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी भारत के सचिन तेंदुलकर हैं जिन्होंने 15,921 रन बनाए हैं। ऑस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग ने 13,378 रन बनाए हैं। दक्षिण अफ़्रीका के जैक कैलिस, जो बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में अच्छे थे, ने 166 मैचों में 13,289 रन बनाए हैं। भारत के राहुल द्रविड़ ने 164 टेस्ट मैचों में 13,288 रन बनाए हैं।
जब पृथ्वी बनी थी तब दिन बहुत छोटा हुआ करता था फिर बढ़ता गया और 24 घंटे का हो गया अब 25 घंटे का क्यों होग

बहुत समय पहले जब पृथ्वी का जन्म हुआ था, तब दिन बहुत छोटे थे, बस कुछ घंटे लंबे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, दिन और बड़े होते गए, और आज भी वे थोड़े-थोड़े लंबे होते जा रहे हैं। बहुत समय पहले, पृथ्वी पर दिन वाकई बहुत छोटे थे – इतने छोटे कि लोगों के पास कुछ भी करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता था। अरबों वर्षों में, दिन धीरे-धीरे लंबे होते गए। पहले, यह 19 घंटे लंबा हुआ, और अब यह 24 घंटे का है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में, एक दिन 25 घंटे लंबा भी हो सकता है। आइए जानें कि दिन सबसे छोटे कब थे और समय के साथ वे कैसे लंबे होते गए। बहुत समय पहले, लगभग 4.5 अरब साल पहले, पृथ्वी का जन्म हुआ था। उस समय, कोई पौधे, जानवर या लोग नहीं थे। चंद्रमा का खिंचाव और पृथ्वी की गति ने दिनों को बहुत छोटा कर दिया था। वास्तव में, एक दिन हमारे वर्तमान दिनों से लगभग छह गुना छोटा था। धीरे-धीरे, पृथ्वी पर जीवन दिखाई देने लगा और दिन लंबे होते गए। उस समय, एक दिन में इतने घंटे होते थे। 14,000 मील कितनी दूरी है, यह समझने में आपकी मदद करने के लिए, इस बारे में सोचें: यदि आप दिल्ली से अमेरिका जाते हैं और वापस आते हैं, तो यह लगभग 17,000 मील है। तो चाँद उससे भी करीब था! आजकल, चाँद बहुत दूर है, पृथ्वी से लगभग 238,855 मील। जैसे-जैसे समय के साथ चाँद दूर होता गया, पृथ्वी पर दिन लंबे होते गए। जब पृथ्वी लगभग 30 मिलियन वर्ष पुरानी थी, तब एक दिन लगभग 6 घंटे का होता था। जब पृथ्वी 60 मिलियन वर्ष पुरानी हुई, तब एक दिन लगभग 10 घंटे का हो गया था। बहुत समय पहले, पृथ्वी पर एक दिन बहुत छोटा था, केवल 4 घंटे लंबा। यह कल्पना करना कठिन है कि हम इतने छोटे दिनों के साथ कैसे रह सकते हैं! उस समय, चाँद पृथ्वी के बहुत करीब था और बहुत तेज़ी से उसके चारों ओर घूमता था। यह केवल 14,000 मील दूर था, जो कि अब की तुलना में बहुत करीब है। इससे पृथ्वी तेज़ी से घूमती थी। बहुत, बहुत समय पहले, लगभग 1.7 बिलियन साल पहले, एक दिन आज की तुलना में बहुत छोटा था। उस समय, एक दिन आज के 24 घंटों के बजाय केवल 21 घंटे लंबा होता था। बहुत, बहुत समय पहले, जब डायनासोर थे (लगभग 252 से 66 मिलियन साल पहले), दिन थोड़े छोटे थे। 24 घंटों के बजाय, एक दिन केवल लगभग 23 घंटे लंबा होता था। पृथ्वी एक लट्टू की तरह घूम रही है, लेकिन समय के साथ यह धीमी गति से घूम रही है। अभी, एक दिन 24 घंटे लंबा है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होगा। पृथ्वी समय के साथ धीमी गति से घूम रही है। इस वजह से, हर 100 साल में, हमारा दिन लगभग 1.8 मिलीसेकंड लंबा हो जाता है। यह बहुत छोटा सा हिस्सा है! यदि आप लगभग 3.3 मिलियन वर्ष प्रतीक्षा करते हैं, तो दिन एक मिनट लंबा हो जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसा पृथ्वी के घूमने के तरीके और चंद्रमा के साथ उसके संबंध के कारण होता है। कब एक दिन 24 की जगह 25 घंटे का होगा? वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 200 मिलियन वर्षों में, पृथ्वी पर एक दिन 24 की जगह 25 घंटे का हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चंद्रमा धीरे-धीरे पृथ्वी से दूर जा रहा है। अभी, चंद्रमा हर साल पृथ्वी से लगभग 3.8 सेंटीमीटर दूर चला जाता है क्योंकि उनके बीच गुरुत्वाकर्षण काम करता है। विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीफन मेयर्स कहते हैं कि यह एक फिगर स्केटर के घूमने जैसा है। जब स्केटर अपनी बाहें फैलाता है, तो वह अधिक धीरे-धीरे घूमता है। यही प्रभाव अरबों वर्षों से पृथ्वी को धीमी गति से घुमा रहा है। चंद्रमा को अपनी धुरी पर एक पूरा चक्कर पूरा करने में लगभग 27.3 दिन लगते हैं। इसका मतलब है कि चंद्रमा पर एक “दिन” – यानी दिन के उजाले और अंधेरे का एक पूरा चक्र – लगभग 27.3 पृथ्वी दिनों तक रहता है। इसलिए, अगर आप इसे घंटों में सोचें, तो चंद्रमा पर एक दिन लगभग 655 घंटे लंबा होता है! आइए बात करते हैं कि चंद्रमा पर एक दिन कितना लंबा होता है। चंद्रमा पर एक पूरा दिन पृथ्वी के 28 दिनों जितना लंबा होता है। इसका मतलब है कि चंद्रमा पर 14 दिन रात और 14 दिन दिन होते हैं। चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक बड़े घेरे में घूमता है, जिसमें लगभग 27.32 दिन लगते हैं। इस दौरान, चंद्रमा का एक हिस्सा लंबे समय तक पृथ्वी की ओर रहता है, और फिर थोड़ी देर बाद, चंद्रमा का दूसरा हिस्सा पृथ्वी की ओर रहता है। इन लंबे दिनों और रातों की वजह से, चंद्रमा पर तापमान में बहुत बदलाव होता है। लंबी रात के दौरान, यह और भी ठंडा होता रहता है। और लंबे दिन के दौरान, यह और भी गर्म होता रहता है। तो, लंबे दिन और रातें वास्तव में चंद्रमा की सतह पर हर चीज़ में बहुत बड़ा बदलाव लाती हैं! बढ़िया है, है न? ठीक है बच्चे, ये रही पूरी जानकारी!
63 साल की ये दादी करती हैं गजब का डांस, यंग एक्ट्रेसेस को देती हैं कड़ी टक्कर, लाखों लोग हैं इनके दीवाने
रवि बाला शर्मा ने हमें दिखाया कि जब आप कुछ करना चाहते हैं तो उम्र मायने नहीं रखती। वह इतना अच्छा डांस करती हैं कि हर कोई उन्हें देखना पसंद करता है। मुंबई की 63 वर्षीय महिला रवि बाला शर्मा से मिलिए, जिन्होंने अपने अद्भुत डांस मूव्स से सभी को चौंका दिया है। ज़्यादातर लोगों को लगता है कि बड़ी उम्र की महिलाएं डांस नहीं कर सकतीं, लेकिन डांसिंग दादी के नाम से मशहूर रवि बाला शर्मा ने उन्हें गलत साबित कर दिया है। वह मुंबई में अपने बेटे के साथ रहती हैं और सोशल मीडिया पर बहुत लोकप्रिय हो गई हैं। यहां तक कि लोकल 18 भी उनके अविश्वसनीय सफर के बारे में और जानना चाहता था, इसलिए उन्होंने डांसिंग दादी से उनकी कहानी सुनने के लिए बात की। डांसिंग की शौकीन एक दादी इंटरनेट पर बहुत मशहूर हो गई हैं। डांसिंग दादी उत्तर प्रदेश नामक जगह पर एक संगीत शिक्षिका हुआ करती थीं। जब वह सेवानिवृत्त हुईं, तो वह मुंबई चली गईं। कुछ महीनों के बाद, लॉकडाउन के कारण सभी को घर पर रहना पड़ा। कुछ भी करने को न होने पर, उन्होंने अपने सपने को पूरा करने का फैसला किया और ऑनलाइन डांस वीडियो पोस्ट करना शुरू कर दिया। उनके वीडियो इतने लोकप्रिय हुए कि सारा अली खान और आलिया भट्ट जैसी मशहूर हस्तियों ने उन्हें शेयर किया। डांसिंग दादी का कहना है कि वह अपने बेटे एकांश के बिना ऐसा नहीं कर पातीं। रवि बाला शर्मा को बहुत से लोग पसंद करते हैं। हर दिन लोग इंटरनेट पर डांसिंग दादी के वीडियो देखते हैं। इंस्टाग्राम पर उन्हें 600,000 से ज़्यादा लोग फॉलो करते हैं। उनके वीडियो को लाखों व्यू मिलते हैं। अच्छी बात यह है कि भले ही वह 63 साल की हैं, लेकिन हर कोई उनके डांस की तारीफ़ करता है। वह सभी लोकप्रिय गानों के वीडियो शेयर करती हैं। गाने चाहे नए हों या पुराने, डांसिंग दादी सभी पर बेहतरीन डांस कर सकती हैं। उनके फैन्स उनके डांस वीडियो को बहुत पसंद करते हैं। गाने चाहे माधुरी के हों, दीपिका के या भूमि पेडनेकर के, डांसिंग दादी सभी पर डांस करती हैं। वह हमेशा अपने फैन्स के साथ हर लोकप्रिय गाने पर अपने डांस वीडियो शेयर करती हैं। यही वजह है कि वह अब सोशल मीडिया पर सबसे लोकप्रिय लोगों में से एक हैं। डांस के अलावा, वह संगीत में भी बहुत अच्छी हैं।
कोलकाता डॉक्टर मौत मामला: हर घर में संजय रॉय जैसा बेटा होना चाहिए…कोलकाता डॉक्टर हत्याकांड के आरोपी की मां ने ऐसा क्यों कहा? बेटे की 4 शादियों का सच भी बताया

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक भयानक अपराध पर काफ़ी ध्यान दिया जा रहा है, जहाँ आरजी मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की गई। इस बारे में सुनकर कई लोग बहुत दुखी हुए और अब डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। इस अपराध के आरोपी संजय रॉय ने स्वीकार किया है कि उसने ऐसा किया है। उनकी माँ मालती रॉय अब पहली बार मीडिया से बात करने के लिए आगे आई हैं। उन्होंने अपने बेटे की शादियों और अपने बेटे की सास के आरोपों के बारे में सवालों के जवाब दिए। कोलकाता रेप मर्डर केस: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के आरोपी संजय रॉय की माँ मालती रॉय ने पहली बार मीडिया से बात की है। उन्होंने अपने बेटे पर लगे गंभीर आरोपों के बारे में अपने विचार साझा किए और यह भी बताया कि क्या यह सच है कि संजय की चार बार शादी हुई है। मालती रॉय ने जो कुछ भी कहा, उसे जानने के लिए आप पूरा इंटरव्यू पढ़ सकते हैं। टीवी पर एक बातचीत में संजय की माँ मालती रॉय से पूछा गया कि संजय पर आरजी कार में एक महिला डॉक्टर को चोट पहुँचाने और उसकी हत्या करने का आरोप लगाया गया है। उन्होंने कहा कि संजय अकेले शामिल नहीं हो सकते हैं और अन्य लोग भी हो सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि संजय ने अपनी पत्नी के निधन के बाद शराब पीना शुरू कर दिया था। संजय की माँ ने बताया कि उसने अपनी पत्नी को ठीक करने के लिए बहुत सारा पैसा खर्च किया क्योंकि उसे कैंसर था। संजय की माँ उसके साथ खड़ी है, भले ही लोग कह रहे हैं कि उसने कुछ बहुत बुरा किया है। वह कहती है कि वह लंबे समय से घर पर नहीं रह रहा है क्योंकि वह बाजार में काम करने के लिए बाहर चला गया था। उसके खिलाफ गंभीर आरोपों के बावजूद, वह मानती है कि संजय एक अच्छा इंसान है और हर घर में उसके जैसा कोई होना चाहिए। जब उनसे पूछा गया कि वह ऐसा कैसे कह सकती हैं, क्योंकि वह भी एक महिला हैं और संजय पर एक महिला डॉक्टर को चोट पहुँचाने और उसकी हत्या करने का आरोप है, तो उन्होंने बताया कि संजय ने उनके परिवार की देखभाल की, खासकर जब उनकी पत्नी को कैंसर था। इस दावे के बारे में कि संजय ने कई बार शादी की है और महिलाओं के साथ बुरा व्यवहार किया है, उनकी माँ मालती रॉय ने कहा कि यह सच नहीं है। वह कहती हैं कि संजय की सिर्फ़ एक बार शादी हुई है और उनकी सास की बेटी ने उनसे शादी करने का फ़ैसला किया है। मालती ने माना कि संजय ने एक बार एक लड़की को मारा था, जिसके कारण पुलिस में शिकायत दर्ज हुई थी, लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उसके बाद से उन्होंने किसी महिला को चोट नहीं पहुँचाई है।
अरशद नदीम को सर्कस बना दिया गया है, कभी आतंकी से मिलते हैं, कभी पैसे के लिए सेल्फी लेते हैं, नकली बन रहा है पाकिस्तान का सोना

अशरफ नदीम ने जीता स्वर्ण पदक: अशरफ नदीम ने 40 साल में पहली बार ओलंपिक में पाकिस्तान के लिए स्वर्ण पदक जीता। पाकिस्तान में लोग बहुत खुश हैं और खूब जश्न मना रहे हैं। पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अशरफ नदीम को लेकर पाकिस्तान के लोग और सरकार बहुत मूर्खतापूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। नदीम 40 साल में पाकिस्तान के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले व्यक्ति हैं और हर कोई उनका जश्न मना रहा है और उन्हें सम्मानित कर रहा है। लेकिन वे इसे इतने मज़ेदार और अजीब तरीके से कर रहे हैं कि यह हास्यास्पद लगता है। जब अशरफ नदीम पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर अपने गांव वापस आए, तो उनके ससुर मोहम्मद नवाज ने उन्हें एक भैंस तोहफे में दी। यह उनके गांव में एक आम परंपरा है, इसलिए किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। लेकिन फिर, एक वीडियो में दिखाया गया कि कोई व्यक्ति अशरफ नदीम से मिलता है और उन्हें ढेर सारे पैसे देता है। साथ ही, एक व्यवसायी ने नदीम को तोहफे में एक ऑल्टो कार दी। 🚨🚨🚨Big Expose: The sinister connection between Pak sportsman Arshad Nadeem & UN designated terrorist organisations fin sec Harris Dhar (Lashkar-e-Taiba) 📍It's evident from their conversation that this video is very recent after Arshad Nadeem's return from the Paris Olympics… pic.twitter.com/ko8OlJ81ct — OsintTV 📺 (@OsintTV) August 12, 2024 पंजाब (पाकिस्तान) की मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ ने मंगलवार को अशरफ नदीम के घर जाकर उन्हें 10 करोड़ रुपए दिए। उन्होंने उन्हें होंडा सिविक कार भी उपहार में दी। उसी दिन प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ ने एक समारोह के दौरान अरशद नदीम को 15 करोड़ रुपए (5 लाख 38 हज़ार डॉलर) का चेक देकर सम्मानित किया। हालाँकि, एक तस्वीर सामने आई जिसमें अशरफ़ नदीम को आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य हारिस डार से मिलते हुए दिखाया गया। इस पर कई लोगों ने नदीम की आलोचना की और उनके भारतीय दोस्त नीरज चोपड़ा को भी विवाद में घसीटा। सोशल मीडिया पर लोगों ने नीरज को नदीम से दूर रहने की सलाह दी। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान और अशरफ़ नदीम ओलंपिक गोल्ड जीतने के बाद मिल रही चर्चा से जूझ रहे हैं। हर कोई नदीम को उपहार दे रहा है, और वह उन्हें विनम्रता से स्वीकार कर सकता है, यह महसूस नहीं कर रहा कि इससे संभावित परेशानी हो सकती है। आतंकवादी के साथ उसकी मुलाकात विशेष रूप से चिंताजनक है और उसका करियर खतरे में पड़ सकता है।
कोलकाता डॉक्टर हत्याकांड: कोलकाता रेप केस की जांच CBI करेगी, कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, जानें उस दिन क्या हुआ था?

कोलकाता में जूनियर डॉक्टर से बलात्कार और हत्या की जांच अब सीबीआई को सौंप दी गई है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया। इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर पुलिस रविवार तक अपनी जांच पूरी नहीं कर पाती है तो मामला सीबीआई को सौंप दिया जाएगा। पीड़िता के माता-पिता भी चाहते थे कि सीबीआई जांच करे। सोमवार को जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनसे मिलने गईं तो उन्होंने भी यही कहा। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक मामले पर गौर किया और बिना किसी के कहे ही इसे संभालने का फैसला किया। उन्होंने मामले की विस्तृत जानकारी सुनी और फिर पुलिस से कहा कि सीबीआई (विशेष जांच दल) को बुधवार सुबह तक जांच अपने हाथ में लेने दें, चाहे कुछ भी हो जाए। अगली बार वे मामले के बारे में तीन हफ्ते बाद बात करेंगे। हाईकोर्ट पूरी जांच पर नजर रखेगा। इससे पहले हाईकोर्ट ने पुलिस से कहा था कि वे दोपहर एक बजे तक मामले की पूरी जानकारी उन्हें दें। इससे उन्हें मामले के बारे में कई नई बातें जानने में मदद मिली। लड़की के माता-पिता दोपहर एक बजे पहुंचे, ठीक उसी समय जब फोरेंसिक टीम सबूत इकट्ठा कर रही थी। उन्हें थोड़ी देर इंतज़ार करने के लिए कहा गया, लेकिन 10 मिनट बाद उन्हें उस कमरे में ले जाया गया जहाँ उनकी बेटी का शव था। कुर्सियाँ लगाई गई थीं ताकि वे देख सकें कि फोरेंसिक टीम क्या कर रही थी। इसलिए, माता-पिता का यह दावा कि उन्होंने अपनी बेटी का शव देखने के लिए तीन घंटे इंतज़ार किया, सच नहीं था।
पाकिस्तानी ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अशरफ नदीम मुसलमान के साथ-साथ राजपूत भी कैसे हैं, इतना बड़ा समुदाय

अशरफ नदीम के परिवार को उन पर बहुत गर्व है क्योंकि उन्होंने पेरिस ओलंपिक में भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता था। भले ही वे मुस्लिम हैं, लेकिन वे खुद को सुखेरा राजपूत भी कहते हैं, जो लोगों का एक विशेष समूह है। पाकिस्तान में कई सुखेरा राजपूत रहते हैं। पाकिस्तान के अरशद नदीम ने पेरिस ओलंपिक में भाला नामक एक लंबी छड़ी को 92 मीटर तक फेंककर स्वर्ण पदक जीता! वह पाकिस्तान में सुखेरा राजपूत समुदाय नामक लोगों के एक समूह का हिस्सा हैं। भले ही अरशद एक मुस्लिम हैं, लेकिन उनका परिवार गर्व से खुद को राजपूत कहता है। हम बाद में पता लगाएंगे कि क्यों। वह पंजाब क्षेत्र में मियां चानू नामक जगह में रहते हैं। उनके समूह, सुखेरा राजपूत कबीले को सुखेरा के नाम से भी जाना जाता है। सुखेरा लोगों का एक समूह है जो पाकिस्तान के पंजाब में रहते हैं, और उनका एक विशेष उपनाम सुखेरा है। वे एक बड़े परिवार की तरह हैं जो तोमर राजपूतों से आते हैं, जो प्रसिद्ध योद्धा थे। सुखेरा पछाड़ा नामक एक बड़े समुदाय के चार छोटे समूहों में से एक है। अन्य समूह साहू, हिंजरा और चोटिया या भनेका हैं। इनमें से प्रत्येक समूह का मानना है कि वे जाने-माने राजपूत परिवारों से आते हैं। बहुत से लोग आज भी हरियाणवी भाषा में बात करते हैं। वे सभी इस्लाम की सुन्नी शाखा का पालन करते हैं। उनकी परंपराएँ और काम करने के तरीके पाकिस्तान में रहने वाले अन्य हरियाणवी मुसलमानों जैसे रंगहर और मेव समूहों से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। बहुत समय पहले, भारत में सुखेरा राजपूत नामक लोगों का एक विशेष समूह था। वे राजपूतों के नाम से जाने जाने वाले एक बड़े समूह का हिस्सा हैं। विशेष रूप से, वे डोडिया राजपूत परिवार और पुरावत कबीले से संबंधित हैं। कई साल पहले, इस राजपूत समूह के कुछ लोगों ने इस्लामी धर्म का पालन करने का फैसला किया, लेकिन फिर भी अपनी राजपूत परंपराओं और पहचान को बनाए रखा। आज, पाकिस्तान में इस समूह से आने वाले कई मुसलमान खुद को सुखेरा राजपूत कहते हैं। अरशद उनमें से एक हैं, और उनके परिवार को सुखेरा कहलाने पर बहुत गर्व है। सुखेरा राजपूतों के लिए इस्लामी धर्म में परिवर्तन बहुत समय पहले मध्यकाल के दौरान शुरू हुआ जब मुगल सम्राट भारत के प्रभारी थे। सुखेरा समेत कई राजपूतों ने 12वीं सदी के बाद अलग-अलग कारणों से इस्लाम धर्म अपनाना शुरू कर दिया। सुखेरा राजपूतों का इतिहास रावत प्रताप सिंह डोडिया नामक एक नेता से जुड़ा है, जो उनके समूह के पहले नेता थे। समय के साथ, सुखेरा राजपूतों के नेता विवाह करके और दूसरे शाही परिवारों के साथ दोस्ती करके महत्वपूर्ण बने रहे। ऐसा क्यों हुआ? जब मुसलमानों ने शासन करना शुरू किया, तो देश में चीजें बदलने लगीं। कुछ राजपूत, जो महत्वपूर्ण लोग थे, ने मुसलमान बनने का फैसला किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उन्हें ज़्यादा ताकत और पैसा मिलेगा। उनमें से कुछ नए शासकों के साथ दोस्ती करना चाहते थे। दूसरों ने अपना धर्म बदल लिया क्योंकि उन्हें हिंदू समाज के सख्त नियम पसंद नहीं थे। लोगों ने अपनी विशेष हिंदू परंपराओं और जीवन शैली को बनाए रखा। बहुत समय पहले, कुछ राजपूत, जो योद्धा थे, ने इस्लाम का पालन करना शुरू कर दिया, लेकिन फिर भी अपनी कई पुरानी हिंदू परंपराओं को बनाए रखा। वे आज भी यही करते हैं, और इससे उन्हें याद रखने और यह दिखाने में मदद मिलती है कि उनका परिवार कौन है। कई राजपूत परिवारों ने इस्लाम का पालन करना शुरू कर दिया। पंजाब और सिंध में कुछ जगहों पर सुखेरा जैसे कई राजपूत परिवार इस्लाम का पालन करने लगे। भले ही उन्होंने अपना धर्म बदल लिया, लेकिन उन्होंने अपनी राजपूत परंपराओं को बनाए रखा और मुस्लिम राजपूत के रूप में जाने गए। वे आज भी अपने पुराने रीति-रिवाजों और पारिवारिक तौर-तरीकों का पालन करते हैं। सुखेरा पंजाबी क्षेत्र के लोगों का एक समूह है। बहुत समय पहले, पंजाब में कई राजपूत परिवारों ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम अपना लिया था। सुखेरा ने भी अपने क्षेत्र में होने वाली घटनाओं, मुस्लिम शासकों से उनकी मुलाकातों और उस समय के नियमों और शर्तों के कारण ऐसा ही किया। मुस्लिम सुखेरा राजपूत और हिंदू राजपूत एक जैसे हैं क्योंकि वे दोनों राजपूत कहलाने वाले लोगों के समूह से हैं। भले ही उनके धर्म अलग-अलग हों, लेकिन वे एक ही विरासत और इतिहास साझा करते हैं। यह एक ही बड़े परिवार का हिस्सा होने जैसा है, लेकिन अलग-अलग मान्यताएँ हैं। बहुत समय पहले, मुस्लिम सुखेरा राजपूत और हिंदू राजपूत एक ही बड़े परिवार का हिस्सा थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, वे अलग-अलग धर्मों का पालन करने लगे, जिसका मतलब है कि उन्होंने कुछ चीजें अलग-अलग तरीके से करनी शुरू कर दीं। हालाँकि अब उनके कुछ नए रीति-रिवाज हैं, लेकिन वे अभी भी कुछ पुराने रीति-रिवाजों को साझा करते हैं। आइए जानें कि आज वे कैसे अलग हैं। सुखेरा राजपूत मुस्लिम हैं, जिसका मतलब है कि वे इस्लामी आस्था का पालन करते हैं। यह बताता है कि वे कैसे प्रार्थना करते हैं, वे कौन से विशेष समारोह करते हैं और कौन से त्यौहार मनाते हैं। अब वे जो सबसे बड़ी छुट्टियां मनाते हैं, उनमें से एक ईद है। भोजन – कई हिंदू राजपूत केवल सब्जियाँ खाते हैं, लेकिन मुस्लिम सुखेरा राजपूत आमतौर पर मांस खाते हैं। हालाँकि, वे गोमांस या सूअर का मांस नहीं खाते हैं क्योंकि उनके धर्म, इस्लाम में इस बारे में नियम हैं कि वे क्या खा सकते हैं। पर्दा प्रथा एक तरह का पहनावा है जिसमें महिलाएँ खुद को घूंघट से ढकती हैं। मुस्लिम सुखेरा राजपूत नामक एक समूह में, महिलाएँ हमेशा ये घूंघट पहनती हैं क्योंकि यह उनके धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। राजपूत नामक दूसरे समूह में, यह उतना सख्त नहीं है, इसलिए महिलाओं को हमेशा घूंघट नहीं पहनना पड़ता है। अलग-अलग समूहों के लोगों के विवाह करने के अपने-अपने खास तरीके होते हैं। उदाहरण के लिए, मुस्लिम सुखेरा राजपूत अपनी इस्लामी विवाह परंपराओं के हिस्से के रूप में निकाह नामक एक विशेष समारोह करते हैं। दूसरी ओर, हिंदू राजपूतों के पास हिंदू विवाह के लिए अपने स्वयं के अनूठे अनुष्ठान